मारवाड़ की महिलाओं की आजादी का प्रतीक घुड़ला* *गणगौर भोळावणी के अवसर पर विशेष जानकारी-* (Jodhpur gangor Festival rajasthan Festival 2019)
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*मारवाड़ की महिलाओं की आजादी का प्रतीक घुड़ला*
*गणगौर भोळावणी के अवसर पर विशेष जानकारी-*
जोधपुर। सूर्यनगरी की महिलाएं आज भी सदियों पुरानी परम्परा निभा रही है। इन दिनों शहर में कई स्थान पर महिलाएं सिर पर घुड़ला रख घूमती नजर आ जाएगी। सदियों पूर्व मारवाड़ की महिलाओं अपहरण करने वाले घुड़ले खान का वध कर महिलाओं का मुक्त कराने की याद में यह पर्व आज भी यहां मनाया जाता है। सूर्यनगरी की महिलाएं आज भी सदियों पुरानी परम्परा निभा रही है। इन दिनों शहर में कई स्थान पर महिलाएं सिर पर घुड़ला रख घूमती नजर आ जाएगी। सदियों पूर्व मारवाड़ की महिलाओं अपहरण करने वाले घुड़ले खान का वध कर महिलाओं का मुक्त कराने की याद में यह पर्व आज भी यहां मनाया जाता है। महिलाओं की आजादी का प्रतीक माने जाने वाली इस परम्परा की शुरुआत का भी रोचक किस्सा है। जोधपुर की स्थापना करने वाले राव जोधा का पुत्र राव सातल वर्ष 1545 में मारवाड़ की गद्दी पर बैठे। इनके दो पुत्र थे दूदाजी व परसिंह। इन दोनों में सांभर पर आक्रमण कर दिया। इसकी जानकारी अजमेर के शाही सूबेदार मल्लू खान, सीरिया खान व मीर घुड़ले खान को हुई। ये लोग मांडू के राजा के सिपाही थे। इन लोगों ने मेड़ता पर आक्रमण कर दिया। इनका पीछा करते हुए मांडू के राजा ने भी अजमेर से सेना ले जोधपुर पर हमला कर दिया। इस सेना ने पीपाड़ पर हमला कर लूटमार की और तिजणियों(महिलाओं)को पकड़ कर ले गए। इस सेना ने कोसाणा के पास पड़ाव डाला। हमले के कारण दूदाजी व परसिंह जोधपुर पहुंचे। राव सातल ने इन दोनों को साथ लेकर शाही सेना पर हमला बोला। राव सातल ने घुड़ले खान को मार कर तिजणियों को मुक्त कराया। तिजणियों ने घुड़ले खान के प्रतीक के रूप में मिट्टी का छोटा घड़ा बनवाया और घुुड़ले खान के चेहरे पर हुए घावों की संख्या के बराबर उसमें छेद करवाए। इसमें एक दीपक जला कर महिलाएं अपने सिर पर रख इसे लेकर घर-घर घूमी। यह युद्ध महिलाओं की मुक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस युद्ध में राव सातल वीरगति को प्राप्त हुए। यह घटना १५४८ वैशाख सुदी तीज को घटी। बीज को युद्ध हुआ व तीज को बंदी महिलाओं को आजाद कराया था। कोसाणा के तालाब पर राव सातल का अंतिम संस्कार किया गया। वहां पर आज भी चबूतरा बना हुआ है। राव सातल की सातों रानियां उनके साथ सती हुई थी। जोधपुर में चैत्र बदी अष्टमी को घुड़ले का मेला होता है। चैत्र सुदी तीज को घुड़ले के पात्र को पानी में विसर्जित कर दिया जाता है। इस पात्र में जलता रहने वाला दीपक घुड़ले खान की जीवात्मा का व इस पर बने छेद उसके चेहरे पर युद्ध के दौरान हुए घाव के प्रतीक है। इसके बाद से पूरे मारवाड़ में महिलाओं की आजादी के प्रतीक के रूप में गली-गली युवतियां व महिलाएं घुड़ला सिर पर लेकर घूमती है। इन दिनों शहर में कई स्थान पर शाम के समय घुड़ला घूमता नजर आ जाता है। युवतियां इस घुड़ले को लेकर घर-घर जाती है। लोग इसके दर्शन कर अपनी श्रद्धानुसार इसमें पैसे चढ़ाते है।
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