पोस्ट को पूरा पढ़ें गंभीरता से चिंतन मंथन करें और हो सके तो अपने विचार रखें।
*हमारे समाज में सफलता का पैमाना*
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एक बार सभी लोग इस *पोस्ट को पूरा पढ़ें गंभीरता से चिंतन मंथन करें और हो सके तो अपने विचार रखें।*
ज्यादातर हमारे यहां क्या होता है सफलता का पैमाना छोटी मोटी सफलताओं को मान लिया जाता है और जहां है वहीं बने रहते हैं उससे आगे बढ़ने का प्रयास नहीं करते और यह विशेष कर स्थिति हमारे समाज में अधिकतर सब जगह नहीं परंतु अधिकतर देखने को मिलती है।
*अधिकतर लोग क्या समझते हैं कि छोटा मोटा जॉब मिल जाए या छोटा मोटा व्यापार शुरू हो जाए और उससे शहर में निवास योग्य घर बना ले और छोटी मोटी चार पहिया वाहन मेंटेन कर ले और कुछ मंथली बचत हो जाए।* बस जिसके पास यह हो गया वह अपने आप को सफल मान लेता है। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए सीढ़ी दर सीढ़ी सफलता की ओर निरंतर बढ़ता रहना चाहिए। जिन लोगों ने अपने मेहनत और बलबूते पर अपना व्यापार जमाया है उनको आधुनिकता के हिसाब से मॉडर्नाइजेशन करते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए *एक संकुचित विचारधारा से प्रसारित सफलता के पैमाने* पर नहीं रुकना चाहिए। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि अधिकतर लोगों का रिचेस्ट पैमाना नहीं बढ़ पाता है जिसका नुकसान स्वयं ऐसे व्यापारी को भी होता है और समाज को भी होता है क्योंकि बड़े पैमाने पर ऐसे लोग स्वयं के बलबूते पर कोई ट्रस्ट के जरिए या किसी भी प्रकार से सोशल वर्क जैसे अन्य सक्षम समाजों में होता है वैसे नहीं कर पाते। क्या कोई समाज का ऐसा व्यक्ति है जिसकी विश्व लेवल पर, देश लेवल पर, राज्य लेवल पर, जिला लेवल पर, और तहसील लेवल पर, किसी भी स्तर पर अमीरो की सूची में गिनती होती हो। वैसे हमारे समाज में ऐसा कोई जनाधार वाला नेता जो समाज हित की बात करता हूं अभी नहीं लेकिन मान लो यदि कोई हो भी जाए तो क्या ऐसा कोई रिचेस्ट पर्सन है समाज में जो एक साथ एक करोड रुपए ऐसे व्यक्ति को चुनावी डोनेशन दे सके मेरे विचार से नहीं है। तो विचार करें हम व हमारा संपूर्ण समाज किस स्तर पर आज भी खडा है। विदेशों में आप देखिए जो विकसित देश है उनमें सफलता का पैमाना यह उक्त प्रकार से नहीं अपनाया जाता *छोटा सा घर हो गया छोटी सी चार पहिया गाड़ी हो गई और थोड़ी बचत हो और छोटी मोटी पढ़ाई बच्चों को करा दी जाए* क्यों हायर एजुकेशन मै पिछड़े हुए हैं क्योंकि हायर एजुकेशन अमीर समाज व अमीरों के लड़के ही प्राप्त कर पाते हैं। कई कई पर तो विद्यार्थियों को संस्थाओं के बैनर पकड़ा दिए जाते हैं या जो अपने रोजगार के लिए संघर्षरत है उनको संस्थाओं के बैनर पकड़ा दिए जाते हैं इसके लिए प्रेरित करने की बजाय रोजगार बढ़ाने की तरफ प्रेरित करना चाहिए। इसलिए विदेशों में विकसित देशों में यह पैमाना नहीं अपनाया जाता इसीलिए तो वहां अमीरों की संख्या बढ़ गई और अमीरों की संख्या बढ़ गई इसलिए वो सब देश विकसित हो गये और हर क्षेत्र में आगे हो गये। अमेरिका जैसे विकसित देशों को छोड़िए भारत में ही देख लीजिए एक समुदाय पारसी समुदाय उन पारसी समुदाय की जो पंचायत है उसका एक पैमाना है वह अपने समुदाय के व्यक्ति को जो 90000 शब्दों में नब्बे हजार या इससे नीचे मासिक कमाता है ऐसे व्यक्ति को वह पारसी पंचायत बीपीएल की श्रेणी में रखती है। और फिर पूरी पंचायत का दायित्व बनता है कि उसका जो मासिक कमाई का आर्थिक स्तर है उसको एन केन प्रकारेण बढ़ाया जाता है। अब आप विचार करें 90000 मासिक बहुत बड़ी बात होती है वह भी वहां पर बीपीएल है। और हमारे यहां पर 50,000 कमाने वाला 30,000 कमाने वाला या 20000 कमाने वाला भी अपने आपको जीवन में सफलता के शिखर पर पहुंचा हुआ मान लेता है। (सबके लिए नहीं है और जो ऐसा नहीं मानते और जो संघर्षरत है उनको धन्यवाद) और बस उसी स्तर को मेंटेन करता रहते है कि यह ज्यादा नीचे इनकम नहीं चली जाए ऊपर थोड़ा बहुत चले जाए अपने आप तो किस्मत की बात है। और एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी अपने जॉब को अपने व्यापार को अपने कार्य को इत्यादि में चार चांद लगा कर बड़े सपने देखना बंद कर देता है। *इसलिए निवेदन है सामाजिक स्तर पर एक जीवन स्तर का और मासिक इनकम अर्जित करने का पैमाना निर्धारित करें* और जो सक्षम है वह लोग ऐसे तय पैमाने से नीचे रहने वाले लोगों का सहयोग करें मोटिवेट करें आगे बढ़ने हेतु हर प्रकार से प्रेरित करें जरूरी नहीं है धन से ही सहयोग किया जाए मोटिवेशन और प्रेरणा सबसे बड़ी बात होती है और वही आगे उत्तरोत्तर प्रगति करने की दिशा में बढ़ाती है अभी corona GDP crisis चल रहा है अभी की बात नहीं है लेकिन स्थितियां सामान्य होने पर जरूर कुछ किया जा सकता है।
पोस्ट लंबी नहीं हो इसलिए इतना ही उचित है अगर विचार अच्छा लगे तो सभी समाज के विद्वानों से निवेदन है कि अपने अपने सुधारात्मक विचार जरूर रखें।
*।।जय समाज।।*
*।।निवेदन।।*
*Girraj Prasad Prajapat*
*Advocate*
*Raj high court Jaipur*
*Ch 336 "E" Block high court Campus*
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