मै कौन या हम कौन......(बाबू लाल जी नोखा बाड़मेर द्वारा लिखित लेख )
चलो ये तो बात हो गई समाज की...अब बात करते है मुद्दे की। बात दरअसल इतनी सीधी भी नहीं है और ज्यादा टेढ़ी भी नहीं है। बात है कुम्हार, प्रजापत, प्रजापति, कुम्भार, कुमावत .... और भी बहुत नाम है, लेकिन है तो सब एक ही। कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम सबटाइटल में क्या लगते है। फर्क इससे पड़ता है कि क्या हम एक है....? वाकई सोचने वाली बात है कि क्या हम एक है ?? सिर्फ एक बार अपने भीतर मन में खुद से सवाल करके देखो। अगर आपको जवाब "ना" में मिले तो कोई दुःख वाली बात ही नहीं क्योंकि आप स्पष्टवादी हो ओर आपको सच सुनना पसंद है। अगर आपको जवाब में"हां" मिले तो अगला सवाल अपने मन में खुद से जरूर पूछना की क्या आपने कभी समाज को जोड़ने का काम किया है?? यही वो सवाल है जो समाज के ज्यादातर व्यक्तियों के मन में हैं या होना चाहिए। अगर अब आपका जवाब "हां" है तो बधाई हो आप अपने समाज से जुड़े हुए हो। और अगर आपका जवाब ना है तो फिर आप समाज से जुड़े हुए नहीं हो और इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आपका सबटाइटल क्या है। समाज की तादात बहुत ज्यादा होते हुए भी आज हम राजनीति में ज्यादा सक्रिय नहीं है, ना ही हम ज्यादा बिजनेस अपोर्नितीज को हासिल कर पा रहे है। क्यों.....क्यों आज हम इतने ज्यादा होते हुए भी इतने पीछे है कि हम अपने समाज की पंक्ति में खड़े आखरी व्यक्ति का चेहरा भी नहीं देख सकते। क्यों आज हम अपने समाज से ही दूर भागने की कोशिश कर रहे है? क्यों आज हम अपनो को ही टांग पकड़ कर गिराने में ही लगे हुए है। क्या यही इस समाज की फितरत है?? समाज में काफी लोगों से मिलना होता है .......लेकिन "इनसे मिलिए ये हमारे समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति है।" ... ये सुन हुए एक अरसा सा हो गया है। शायाद मेरी आंखो में एक उम्मीद तो अभी भी बाकी है एक आशा की किरण शायद .......... कोई कहे या ना कहे लेकिन आदत तो आज से डालनी पड़ेगी। समाज का कोई भी व्यक्ति चाहे समाज को सहयोग ना करता हो लेकिन अंत में उसे घूम फिर कर आना समाज के पास ही पड़ता है। जब हमें रहना अपनो के पास ही है तो क्यों हम उनकी मदद नहीं करते ....क्यों हम उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा नहीं देते। शायद एक बार उन्हें आगे बढ़ना तो सिखाइए क्या पता वो दुनिया में सबको पीछे छोड़ दे। सिर्फ एक बार...सिर्फ एक बार अपनो को और अपने समाज को सहयोग देकर देखिए..क्या पता शायद दुनिया में उनके जितना हुनरमंद कोई ओर हो ही ना। क्या पता समाज में अपनो के लिए की गई आपकी एक छोटी सी पहल एक बड़ा रूप ले ले। समाज की मदद के लिए एक हाथ आप बढ़ा कर तो देखो... शायद आपके हाथ बढ़ाने का इंतजार आपका कोई अपना ही कर रहा हो।
चलो आज से ही सही लेकिन एक शुरुआत करते है कि अगर हम समर्थ है तो समाज के युवाओं को उनकी योजना के लिए एक सहयोग जरूर करेंगे। सहयोग छोटा या बड़ा नही होता... सहयोग तो सहयोग होता है। ज्यादा नहीं तो बस थोड़ा सा ही सही लेकिन रोजाना अपने समाज के बंधुओ से मिलने या उनसे बात जरूर करेंगे। ,....... लेख तो अधूरा छोड़ रहा हूं शायद इस उम्मीद में कि एक दिन सारा समाज मिल कर बोलेगा की इस लेख को पूरा लिखो ...... तभी ये लेख पूरा लिखा जाएगा।
इसमें किसी को ठेस पहुंचाना हमारा उद्देश्य नहीं है।
कोई गलती हो तो माफी चाहेंगे।🙏🙏
आपका अपना साथी
B.L. Sardiwala
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